सूफी सन्त डॉ.चन्द्र गुप्ता जी का जन्म 12 फरवरी 1916 को रोहतक (हरियाणा) में हुआ था। उनके पिताजी का नाम लाला निरन्जन लाल अग्रवाल माता श्रीमती पार्वती देवी था। आपके पूर्वज आज जो हरियाणा है उनके राजप्रमुख थे। उनको रायबहादुर राय चौधरी कानूगो का खिताब मिला हुआ था। लाला निरन्जन लाल अग्रवाल के दो पुत्रियॉ व तीन पुत्रों का जन्म हुआ। जिनका नाम श्रीमती विद्यावती, इच्छरावती, पुत्र लाला कल्याण सहाय अग्रवाल, लाला पूरणचन्द गुप्ता व डॉ. चन्द्रगुप्ता हुए। लाला निरन्जन लाल अग्रवाल के तीनों पुत्र ही अध्यात्म मे बहुत पहुॅचवान हुए। श्री कल्याण सहाय जी धोलपुर स्टेशन के स्टेशन मास्टर होते हुये बहुत उच्च कोटी के संत हुऐ तथा मात्र 25 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी इच्छा से शरीर को त्याग दिया था। वे समाधिवस्था में जमीन से काफी ऊॅचे उठ जाते थे, ऐसा बताया गया है। दूसरे पुत्र श्री पूरणचन्द गुप्ता अपने समय के आर्य समाज के प्रचारक व संत हुये। जिनका समाज पर काफी गहरा प्रभाव रहा। वे आर्य समाज के प्रमुख रहे तथा अनुयायी रहे। तीसरे पुत्र डॉ. चन्द्रगुप्ता ने अपनी शिक्षा रोहतक में ली। उन्होंने इन्टर की परीक्षा राजकीय कॉलेज रोहतक से की। आपको अपनी मॉ का ऐसा आर्शीवाद प्राप्त था कि शुरू से ही वे हनुमान भक्त रहे। चार वर्ष की अवस्था से ही मॉ के साथ मन्दिर जाया करते थे। जब वे 12 वर्ष के हुए तो बाबरे मोहल्ले जहॉ उनका पैतिृक स्थान रहा है, राधास्वामी मत के गुरू महाराज आ के वहॉ ठहरते थे तथा प्रवचन करते थे।
दिनांक 04.06.1938 को डाक्टर साहब का विवाह उनके दोस्त लाल नानक चन्द मित्तल की बहिन श्रीमती दर्शना देवी के साथ हुआ जो जीन्द शहर की रहने वाली थी। वर्ष 1939 में पिताजी ने रोहतक से बीकानेर अपने पिताजी के साथ आकर वन विभाग लेखा विभाग में इन्चार्ज के पद पर नौकरी करनी शुरू कर दी। उनके कुल 7 पुत्र व 3 पुत्रियाँ हुई जिनमें से पाँच पुत्र व दो पुत्रियाँ जीवित रही। उनका नाम श्रीमती पुष्पलता गुप्ता, कृष्ण कुमार गुप्ता, श्रीमती कमला गुप्ता, श्री पवन कुमार, श्री राजेन्द्र कुमार, डॉ. सतीश कुमार व डॉ. अशोक कुमार हैं। इनमें से प्रथम चार का जन्म स्थान बीकानेर रहा शेष तीन का जयपुर, 1939 से 1949 तक वे डागा बिल्डिंग रतनबिहारी जी मंदिर के पास बीकानेर में रहे जहाँ उनकी मुलाकात राज ज्योतिषी मिश्रा जी से हुई जो अपने समय के उच्च कोटी के हनुमान उपसक थे। उनके सानिध्य में पिताजी ने हनुमान मंदिर में भक्ति की परिकाष्ठा प्राप्त की व वर्ष 1950 में जब वे जयपुर आ गये तो उनकी मुलाकात हिन्दु सन्त राम सहाय जी से हुई जो पिताजी को हर रोज रामायण का पाठ पढाकर सुनाते तथा उनका गुढ अर्थ भी समझाते थे पिताजी उनको गुरू की नजर से देखा करते थे। रामायण के पाठ का इनता गहरा असर हुआ की उन्होने ईश्वर भक्ति को अपना जीवन का ध्यंय मान के हनुमान जी को ही गुरू मान के आराधना करने लगे, इसी समय उनको समाज का भला करने की चाह हुई जयपुर में डॉ. आर.पी. माथुर जो अपने समय के माने हुए होम्योपैथिक चिकित्सक रहे उनसे शिक्षा ले होम्योपैथिक में डिग्री हासिल कर स्वंय 1957 में चरेटेबिल डिस्पेन्सरी दरोगा की हवेली गोविन्द रजाजी के रास्ते में खोल दी।
इसी बीच में 1950 में उनका पदस्थापन महालेखाकार राजस्थान जयपुर में हो गया था। महालेखाकार के कार्यालय मंे कार्य करते हुए सुबह 8.00 बजे से 9.30 बजे व सांय 5.30 से 8.30 बजे तक मरीजों को मुफ्त देख दवाईया दिया करते थे। इसी डिस्पेन्सरी में उनकी मुलाकात श्री सागर चन्द सोनी जो कल्याण जी के रास्ते में रहते थे पिताजी के मरीज थे उनसे हुई उन्होने उनको ध्यान मार्ग की ओर जाने के लिये उत्साहित किया ओर उनके साथ दीनानाथ जी के मंदिर में महात्मा चतुरभुज सहाय जी के सत्संग में हर रोज जाने लगे, वही उनकी मुलाकात महात्मा रघुवर दयाल जी के पुत्र महात्मा राधा मोहन लाल जी से हुई। उनका शिष्यत्व ग्रहण कर उनके अनुयायी हो गये महात्मा राधा मोहन लाल जी ने शिष्य बनाने के बाद कहा डाक्टर साहब जो काम आपको मेरे जाने के बाद करने है वह आज से शुरू कर दो। लोगों को सत्संग करवाकर उनको तबज्जू दे तैयार करो और अपने गुरू भाई ठाकुर राम सिंह जी जो जयपुर के बहुत उच्च कोटी के सन्त हुऐ है उनके पास अध्यात्मिक विद्या पूर्ण रूप से प्राप्त करने हेतु भिजवा दिया जहा पिताजी उनकी सेवा में 1971 तक रहे।
ठाकुर साहब रामसिंह जी पिताजी को अपना बेटा मानते हुऐ सारी रूहानी विद्या उनको दे गये। ठाकुर राम सिंह जी ने अपना शरीर 14 जनवरी, 1971 को जयपुर में त्याग दिया उनकी समाधि मनोहर पुरा गॉव सांगानेर में बनी हुई है। पिताजी ने 1957 से 1991 तक रूहानी जिन्दगी का सफर तय किया इस सफर में उनके पास बहुत से लोग आये जिनमें प्रमुख श्री भारत भूषण जी शर्मा, दुर्गादान चारण, श्री बी.एन.खन्ना, जे.पी. सिंह, दिनेश जी, श्रीमती कृष्णा शुक्ला, सूर्य प्रकाश शुक्ला, चन्द्र प्रकाश शुक्ला, अन्नत कोटियां गोपाल लाल माथुर व अन्य लगभग 50 व्यक्ति उनके सम्पर्क आये। उनका शिष्यत्व ग्रहण कर रूहानी तरक्की की पिताजी के जीवन मंे बहुत बार चमत्कारी घटनाऐं घटी जिनका उल्लेख किया जाना संभव नहीं है। उनके परिवार में उनके बडे पुत्र श्री कृष्ण कुमार गुप्ता जो अब इस दुनिया में नहीं है उनको पूर्ण अधिकार प्राप्त था। वे 1991 से जब तक जिन्दा रहे। पिताजी के नाम का सत्संग सेठी कॉलोनी करवाते रहे उनके देहान्त के बाद आज भी सेठी कॉलोनी में सत्संग लगातार चल रहा है जो श्री सतीश कुमार जी की देख-रेख में है। वर्ष 1994 मे, मैं भी मालवीय नगर में आकर रहने लगा। बडे भाई कृष्ण कुमार गुप्ता के समाधि लेने के बाद यह सत्संग मालवीय नगर में भी शुरू कर दिया गया जो आज तक चल रहा है। गुरू पूर्णिमा का पर्व हर साल मनाया जाता है। पहले सुक्षम रूप में मनाया जाता था अब उनका आकार बडा हो गया है इसलिये अलग-अलग जगह लेकर मनाया जाता है। इस समय पिताजी का रूहानी सत्संग जयपुर में दो स्थान तथा देहली में छोटे भाई राजेन्द्र कुमार के यहाँ होता है पिताजी के पाँचों पुत्र इसी सम्प्रदाय के सुफी सन्तो के द्वारा दीक्षित है।
He was born on 12th Febuary, 1916.
Leaving for heavenly abode on 17th August 1991.